स्त्रियां
सदैव समझ से परे
मेरी भी समझ से
जब मैं स्वयं एक स्त्री हूँ
कई बार लगती वीरांगनाएं
कई बार होती वात्सल्य रूपी सरिताएं
अनेकों बार देखा है
विदुषी रूप में भी
लेकिन जब ये आती हैं
निकृष्टता पर
तब कल्पना से परे
अपने निम्नतम स्तर पर होती हैं
भय लगता हैं मुझे उस स्तर से
जब जीवनदायिनी का कोई स्तर नहीं होता
Kadambari Singh