यादों की कुंडी

बीता कल जब भी कभी

वक़्त के दरवाजे पर लगी

यादों की कुंडी खटखटाता है

बस मीठी यादों को झांककर

देख लेती हूँ

और लौटा देती हूँ सादर

जानती हूँ किसी को लौटाना

नहीं अच्छा दरवाजे से

लेकिन उसमें उसका भी भला है

इसलिए ये बुरा काम कर लेती हूँ मैं

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