बलात्कार

जिस समाज में मैं जीती हूँ

वहाँ जीवन कम, डर ज्यादा है

आधे से अधिक नज़रें आपको देखती कम

आंखों से बलात्कार करती लगती हैं

जिस समाज का मैं हिस्सा हूँ

वहाँ पीड़ितों को शायद ही इंसाफ मिलता हो

लेकिन आरोपियों को ‘पत्नी’ के रुप में

फिर स्त्री मिल जाती है

सोचती हूँ ” मरे हुए का मरना तो ठीक है

जीते जी मुर्दो की तरह जीवन का क्या अर्थ है”

Kadambari

Leave a comment