इक मुद्दत से वह जोड़ रही है
टूटे ख़्वाबों के टुकड़ों को
इक अरसा बीता सहेज रही है
वह बिखरे अपने पंखो को
धीरे – धीरे, हौले – हौले
चल रही है धीर धरे
होठों पर मुस्कान लिये
आँखों में है ख़्वाब लिये
चुपके – चुपके, धीमे से पोंछ लिया
जो वक़्त ने नयनों में थे नीर दिये
अब अपने पंखों के सहारे
उड़ जाएगी वह गगन से मिलने के लिये
उसे मिले हैं अब पंख नये
Kadambari Kishore