कांच की तरह

सब कुछ छोड़ कर निकलनेवाली

जरूरी नहीं किसी के प्रेम में

सब कुछ छोड़ कर निकले

कई बार चकनाचूर सपनों के

के टुकड़े चुभते हैं टूटे कांच की तरह

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