मसला बहुत उलझा नहीं
लेकिन सबकुछ सुलझा भी नहीं
प्रश्न है मेरे मन में
प्रेम इतनी आसानी से हो जाता है क्या ?
या वासना ने प्रेम का चोला पहन लिया है ?
प्रेम सबसे तो हो नहीं सकता
सम्मोहन हो सकता है
इस सम्मोहन के सम्मेलन को
प्रेम का आगमन और विस्तार कहते हैं
प्रेम बडो़ के आशीर्वाद सा
रब की दुआ सा, निस्वार्थ और
अंधेरों की रोशनी सा होता है प्रेम
इन सारे विशेषणों से सुज्जित होता है
जिससे होता है प्रेम
प्रेम होता है किसी- किसी से
वासना हो सकती है किसी से
Kadambari Singh