अकेली औरतें

औरतें जो नहीं

बाँट रही होती ससुराल-मायके के किस्से

नहीं जा रही होती आँचल को संभाले

बिना गजरा, काजल और बिंदी

जो नहीं भागती बच्चों की उँगलियों को पकड़े

वो भी स्त्री ही होती हैं

और अपने स्त्रीत्व की रक्षा के लिए

पुरुष भी स्वयं होती हैं

क्योंकि ‘अकेली स्त्री’ ये शब्द ही बहुत है

बहुतों के लिए आकर्षण

कई महिलाओं के लिए

दिन बिताने का साधन

Kadambari Kishore

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