अद्भुत

आकाश की सीमा अनंत समंदर में जलराशि विशाल गगन में तारे अनगिनत मानव की गणना संभव किंतु उसकी इच्छाएँ असीमित इन सब अनंत, असीमित तत्वों में भी एक महीन सी रेखा है जहाँ प्रकृति क्षितिज के रूप में गगन और जलधि का सीमांकन करती है लेकिन इन सब सीमाओं में बंधा मानव असीमित, अपरिमित, अनंत… Continue reading अद्भुत

पंख नये

इक मुद्दत से वह जोड़ रही है टूटे ख़्वाबों के टुकड़ों को इक अरसा बीता सहेज रही है वह बिखरे अपने पंखो को धीरे – धीरे, हौले – हौले चल रही है धीर धरे होठों पर मुस्कान लिये आँखों में है ख़्वाब लिये चुपके – चुपके, धीमे से पोंछ लिया जो वक़्त ने नयनों में… Continue reading पंख नये

बेहतर

कविताएं मन बहलाने या फिर प्रेम की अभिव्यक्ति मात्र के लिये नहीं लिखी जातीं ये सच दिखाने, दर्द सांझा करने सोच बदलने या फिर कुछ बेहतर की उम्मीद में भी लिखी जातीं हैं सबकी बेहतरी के लिये Kadambari Kishore

नये रंग

कही- अनकही जाना- अनजाना सुना- पहचाना सब देखते- सुनते ये जाना जाने – पहचाने रास्तों पर चलना आसान तो है लेकिन उन रास्तों पर चलती भीड़ में खुद की पहचान खो जाने का डर है अलग रास्ते नयी मंज़िलों का पता देते हैं जहाँ नये सपनें, नये अरमान इक नया रंग भर देते हैं Kadambari… Continue reading नये रंग

स्वांग

एक लम्बी ज़िन्दगी डर कर गुजारी है लोग कुछ भी बोल देंगे कुछ भी सोचेंगे क्या सोचेंगे ? सोचियेगा जिसे इस डर में समाज ने जिंदा रखा वो समाज खुद भी जिंदा है या ज़िन्दा होने का स्वांग करता है Kadambari Kishore

फ़साना

तुझसे मिलने में जो सुकून है तुझसे बिछड़ने में जो टीस है उन सबके बीच में दिन- रात महीने से साल एक पहर से दोपहर के होने, बदल जाने की खबर नहीं थोड़ा अजीब लेकिन यही फ़साना है Kadambari Singh

जंगली चिड़िया

अगले जनम में मैं चिड़िया बनूँगी तुमसे पूछ नहीं रही ऊपरवाले बता रही हूँ तुम्हें जंगल की चिड़िया बनूँगी ताकि कैद में जीना ना पड़े मेरा कल, मेरा आज सब बस मेरा रहे Kadambari Kishore

माटी

सफलता भी देखिए देखिए कई पहलू हैं इसके अपना और अपनों को भूलकर एक दुनिया, दूसरे हिस्से में दुनिया की अपनी माटी को कभी छुआ कब छुआ याद नहीं उस दुनिया की माटी को छूकर अब सब धुला -धुला सा लगा जो लोरियाँ माँ की थी याद रहीं या नहीं याद नहीं जी जान लगाएं… Continue reading माटी

सर्कस

समाज के लिये जीना बिल्कुल सर्कस के पिंजड़े में बंद जिंदगी सी है क्यूँ जीये क्यूँ नाचे क्यूँ नचाये गये सबके सामने ये बताने और जानने वाला कोई नहीं जितने ज्यादा नचाये जाएंगे उतनी तालियाँ पायेंगे लेकिन सब के बाद थक कर मन बाहलाकर सबका दो सूखी रोटी पाएंगे जब वाइज़ और शैख जी समझाने… Continue reading सर्कस

हमजोली

उलझी -सुलझी आड़ी- टेढ़ी मोटी -पतली काली -गोरी सब गलियों से गुजरी करती हँसी-ठीठोली वो मैं नहीं वो तुम नहीं वो जिंदगी थी जिसका है वक़्त हमजोली Kadambari Kishore