शिलाकृति

पत्थर पर जब तक आघात ना लगे वह एक ‘शिला’ है किंतु जब आघात सही समय और सधे हाथों से लगे तब वह शिला नहीं ‘शिलाकृति’ है हर चोट जो उस पत्थर ने सहा वह चोट सहकर ही उसे सब कुछ मिला है Kadambari Kishore

मजदूर

अमीरों को लगता है वे गरीब होते हैं मध्यम वर्ग को लगता है वे मजबूर होते हैं लेकिन मैं कहती हूँ वे बड़े मजबूत होते हैं टूटे – बिखरे सपनों का दर्द लिये पहाड़, पत्थर तोड़ते हैं नदियों की राह मोड़ते हैं ज़मीन का सीना चीरते हैं ऐसा करने वाले मजदूर होते हैं अमीरों की… Continue reading मजदूर

कुछ सोचा है ?

शादी कब करोगी बेटी की? कुछ सोचा है? कोई वर देखा है? कभी माँ, कभी पिता को इन सवालों से मुक्त करने के लिये कभी अजीब सी हालत से बचने के लिये कभी शादी को मोक्ष मानकर मुक्ति के लिये कुछ लड़कियाँ कर लेती है शादी अब पत्नी से माँ कब बनोगी? कुछ नयी ख़बर… Continue reading कुछ सोचा है ?

जीवन गीत

मैं कविताएं तब तक लिखूँगी जब तक तुम मेरे पास नहीं हो जब तुम और हम साथ होंगे मैं कलम को कागज़ के साथ विश्राम और एकांत दूंगी बिल्कुल वैसे ही जैसी शांति मैं तुम्हारे साथ अपने लिये चाहती हूँ दुनिया का कोई शोर नहीं सफलता-असफलता से भयरहित तब मैं केवल जीवन गीत लिखूँगी तुम्हारे… Continue reading जीवन गीत

मस्त-मगन

राह लम्बी थी रात काली थी वो रास्तों पर डरी- सहमी चलती जा रही थी ये सब बातें बीते कल की बातें हैं इसमें यह बात नयी, निराली थी अब मंज़िल का पता है उसे राहें भी रौशन हैं अब वो डरी- सहमी नहीं राहों पर मस्त -मगन जा रही थी Kadambari Kishore

एक खिड़की

एक खिड़की ऐसी होनी ही चाहिये जहाँ से चाहे वह घर हो, ऑफिस हो रसोई हो या ज़िन्दगी जिसमें सुख -दुख की खिचड़ी पकी हो इनके लिये साफ ताज़ी बयार बदलाव की हवा आती रहे ज़िन्दगी किसकी मुकम्मल है किसको यहाँ रहना है हमेशा ये बात हौले से छूकर हमें समझाती रहे Kadambari Kishore

कंधे

जो नहीं रोतीं अपने पिता के कंधे पर रख कर सिर इसलिये नहीं की पिता ने अपने कंधे नहीं दिये रोने के लिये वे जानती हैं ऐसा करने से कमजोर होते पिता के कंधे और जानती हैं वे नींव के मजबूत बने रहने का अर्थ Kadambari Kishore

सब कुछ

जब कुछ नहीं कहते जब कुछ कहते हैं हम दोनों में ही प्रेम, घृणा वात्सल्य, ईर्ष्या पश्चाताप या आलस्य का भाव हो सकता है जो इसे पढ़ सका, जान सका उससे क्या छुप सका Kadambari Kishore

गंगा जल

गंगा जल सी मेरी कविताएं हैं मेरे लिये जब भी लगा हृदय मलिन, मन भारी जब भी लगी लाचारी, बेबस सी मैं अब हारी कि तब हारी जब नयन हुए अश्रु से भारी जब आत्मा हुई छलनी, शब्द बाण चले जैसे आरी जब लगा संबल पर मेरे मेरा समय भारी मेरी कविताओं ने सहेजा मुझे… Continue reading गंगा जल