नजरों को पढ़ती नजर

नज़रों को पढ़ती हैं नज़र स्त्री के पास है गुण इन्हें पढ़ लेने का या पुरुष भी पढ़ पाते हैं ये हम नहीं समझ पाते लेकिन नज़रों को पढ़ पाते हैं महज नज़रों के मिलने से ही वासना, वहशीपना, प्रेम, अनुराग हास-परिहास सम-विषम दिख जाते हैं हर रोज कितनी ही अजनबी लेकिन कभी भावनाओं से… Continue reading नजरों को पढ़ती नजर

प्रमेय

प्रमेय है तू या समीकरण रेखागणित या अंकों का उलझा-सुलझा सवाल जिसे समझ कर भी ये भय रहता है कि समय रुपी गुरू के सामने कोई कमी ना रह जाये तू कोई कोण, त्रिभुज, चतुभुर्ज या षट्कोण सा समझने में जटिल, देखने में सरल लगे ऐसा कुछ रेखाएं बस एक-दूसरे को या तो काट रही… Continue reading प्रमेय

क़फ़स

यादों , किये गये वादों के क़फ़स से आजाद हो कब तक क्या हुआ ये सोच कर रोते रहें , कब तक ये दुनियाई बातों के नश्तर चुभोते रहें औरत- औरत को समझ जाये ये चीख-चीख कर बोलते रहें “अब जो हैं तो हैं” हम जिस दम जाना था उस दम निकल चले हैं कारवां… Continue reading क़फ़स