मछुआरों ने सीखाया जब जाल चालाकी से स्वादिष्ट भोजन को फंसाकर लगायी जाये तो फंसती हैं असंख्य मछलियाँ जो बिना मेहनत चाहती हैं पाना स्वादिष्ट भोजन बिल्कुल ऐसे ही फांसी जाती हैं लड़कियाँ फंस जाती हैं लड़कियाँ |Kadambari
Kadambari’s Poetry
अंतहीन
कब , कहाँ , क्यों , कैसे ? इन शब्दों को जब भी किसी वाक्य में जोडा़ तो वाक्यों ने अंतहीन अर्थ समेट लिए अपने में इसलिए अब इन शब्दों से रिश्ता रखा है लेकिन बहुत करीब का नहीं Kadambari
मजदूर
मजदूर की मजबूरी किसने समझी मीलों चले भूखे पेट चलते ही रहे नंगे पैर मिले या ना मिले कोई ठौर शाम हुई या हो गयी भोर इसका फर्क समझे बगैर चलते रहे क्योंकि वे थे मजदूर हालात ने उन्हें करना चाहा मजबूर लेकिन इनकी इच्छाशक्ति है मजबूत Kadambari
दायरों की देहरी
एक दिन जब समाज द्वारा भूला दिया जाए दायरों की देहरी का नियम जब नहीं दिखे कोई भी नियम जो अन्याय के विरुद्ध हो जो शोषण के विरुद्ध हो जब सब मतलब और सामर्थ्यवान के साथ मौन हों तो उस समाज की देहरी पर न्याय मांगना भिक्षुक से ही भिक्षा मांगने के समतुल्य है कादंबरी… Continue reading दायरों की देहरी
विकास या बदलाव
विकास या बदलाव सभ्यता की प्रथम आवश्यकता संस्कृति की पहली जरुरत समाज का बदलाव की तरफ पहला कदम परिवार में सामंजस्य का मूलमंत्र किसी देश की व्यवस्था को बचाए रखने का एक आवश्यक मंत्र व्यक्ति और उसके व्यक्तिव के निरंतर निखरते रहने का अमोघ यंत्र Kadambari एक कविता रोज़
किताबों की दुनिया
इन्सानों की दुनिया में खो जाने का डर किताबों की दुनिया में कुछ मिल जाने की उम्मीद किताबें अच्छी- सच्ची दोस्त मौन सलाहकार बेहतर राजदार हरदम वफादार सुख- दुख की साझेदार इनमें मिलता हर किरदार कभी दिख जाता खुद का भी आकार Kadambari World Book Day
प्रवासी पक्षी
प्रवासी पक्षी नहीं होते देशी नहीं कहलाते विदेशी कहलाते भी नहीं अपने लेकिन इन सबसे परे वो आते हैं हर साल सारी कठिनाइयों को पार कर सिर्फ मिलने उस मिट्टी से जहां की फिज़ा उन्हें उनके अपने होने का एहसास देती है इस एहसास को लेकर मीलों उड़ आते हैं प्रवासी पक्षी Kadambari
क्या मैं हूं / मैं क्या हूं
मै क्या हूं ? मैं क्यूं हूं ? मैं ऐसी तो नहीं !! मैं ऐसी ही हूं इन सबसे परे मैं हूं ये सच है किन परिस्थितियों में थी इनसे परे मैं वो हूं जो मैं होना चाहती थी जो मर-मर कर नहीं जीवन जी कर मरना चाहती थी जो सपनों को दफन नहीं उन्हें… Continue reading क्या मैं हूं / मैं क्या हूं
हर दर्द का गर ईलाज हो
हकीम ने कहा, जहां दर्द हो, जहां चोट हो वहां बार- बार ना हाथ रख उस दर्द का,उस ज़ख्म का कुछ मुमकिन गर ईलाज हो वो इलाज़ कर ना उदास हो मरीज़ ने फिर पूछ ही लिया क्या करे कोई जब दर्द ही लाईलाज हो कादंबरी
युद्धक्षेत्र
जब समय एक समय रेखा खींच दे जब कठोरता अपने कठोरतम रूप में अपनी मुट्ठी भींच ले जब समय शत्रुवत मित्र सा करे जब स्वप्न आकुल हों चक्षुओं को छोड़ जाने को तब समय से ना शत्रुता ना मित्रता तब योद्धा और केवल योद्धावत व्यवहार उचित है नर-स्त्री से परे वीर या वीरांगना की भांति… Continue reading युद्धक्षेत्र