किसी ने कहा ‘कहीं खोई लगती हो’ किसी ने कहा ‘जिंदा लाश सी क्यूँ हो’ मैंने कहा “तुम जाने -अनजाने बहुतों का हौसला हो लेकिन क्यूँ मुझे तुम इन बातों से अनजान लगती हो “ मगर तुम मेरे लिए पूरा आसमान लगती हो Kadambari Kishore
Kadambari’s Poetry
मायने
बेपता, बेपरवाह कविताएं नहीं होतीं कोई नज़्म गुमनाम नहीं होती कोई शायर बेनाम नहीं होता हर अफ़साने का अंजाम होता है इन सब बातों के मायने है तब तक जब तक वक़्त मेहरबान नहीं होता Kadambari Kishore
रोटी
रोटी का ना कोई भूगोल ना ही है इसका कोई इतिहास ना ही भूत, भविष्य या वर्तमान बस एक बात समान अमीर, गरीब ज्ञानी, अनपढ़ सबकी ज़िन्दगी में बराबर का स्थान गोल-मटोल सी रोटी का सब करते सम्मान जाति-धर्म सबसे रोटी अनजान Kadambari Kishore
जीवनधारा
अचल, अगम, अविरल जीवनधारा जो ना समझे वह पथिक अज्ञानी बेचारा हर हाल, हर काल में इसका यही रूप निराला हर बीतते पल में जीवन बसा है जैसे कस्तूरी बसे स्वयं मृग में और वह ढूंढे उसे इधर -उधर, वन -उपवन सारा माया का है मोह निराला लेकिन नहीं बंधती इसमें जीवनधारा इसमें बंधा है… Continue reading जीवनधारा
चूल्हा और रोटी
हर घर में चूल्हा है हर घर में रोटी बनी या नहीं फर्क़ तो यहाँ है हर घर में कुछ लोग रहते हैं हर घर में, हर किसी को खाना मयस्सर है या नहीं मतलब तो इस बात से है
बीमारी
दम घुटा- घुटा सा रहता है सांस बुझी- बुझी सी लगती है क्यूँ जानते हो !!!! यहाँ रोना जरूरी है सहारा मांगना मजबूरी है और गर सहारा मांग लिया मतलब वह बहुत संस्कारी है समाज भेद नहीं करता सपनों का दम घोटने में फर्क बस इतना है पुरुषों पर यहाँ महिला भारी है मेरे समाज… Continue reading बीमारी
सुरक्षा
मेरे समाज में औरतें इतनी सुरक्षित हैं जितना तिजोरी में बंद रुपया रुपया भी गर बोल सकता तो बताता कितना दमघोंटू है सुरक्षा के नाम पर बंद रहना।
यादों की कुंडी
बीता कल जब भी कभी वक़्त के दरवाजे पर लगी यादों की कुंडी खटखटाता है बस मीठी यादों को झांककर देख लेती हूँ और लौटा देती हूँ सादर जानती हूँ किसी को लौटाना नहीं अच्छा दरवाजे से लेकिन उसमें उसका भी भला है इसलिए ये बुरा काम कर लेती हूँ मैं
खोज
सगुण की खोज में मानव खुद निर्गुण बनता जाता है ईश्वर से लेकर नौकरी तक सबमें ढूंढता है गुण लेकिन नहीं देख पाता खुद का ही अवगुण मृगमरीचिका इस जग में कस्तूरी मृग सा है मन
नाता
मछली पानी के बिना नहीं जी सकती कहते हैं सब लेकिन क्या पानी को मछली के बिना सूना नहीं लगता ? क्या कुछ खोया या अधूरा नहीं लगता ? ये भी उतना ही सच है जितना सच्चा मछली का पानी से नाता