समझ

ख़ामोशी से वक़्त से बातें करती हूँ मैं इसलिये समझता है वक़्त मुझे वक़्त को समझ आती है मेरी बातें Kadambari Kishore

स्पर्श

शब्द तब तक स्वतंत्र हैं जब तक भावनाओं से नहीं बंधे भावनाओं का स्पर्श पाते ही वे रंग जाते हैं उनके ही रंग में जैसे रंगी है राधा कृष्ण के रंग में Kadambari Kishore

घूँघट

ज़िन्दगी समाज के घूँघट के पीछे से मुझे ना देखा कर जब तू ऐसे घूँघट की आड़ से देखती है तेरा रूप लुभावन हो तब भी मुझे ज़रा भी रास नहीं आती है Kadambari Kishore

उम्मीद का सूरज

शब्द भी अब निःशब्द हैं हर समय, हर तरफ दर्द ही बिखरे हैं इस दर्द ने आवाज़ छीन ली हो शायद कौन जाने? इतने मौन में, स्तब्ध कभी नहीं थे शब्द या शायद ध्यान मुद्रा में हों और प्रार्थना कर रहे हों ईश्वर से कि ये दर्द के बादल दूर हों जल्दी उम्मीद का सूरज… Continue reading उम्मीद का सूरज

संबल

दुःख बड़ा सबका ही होता है पुरुष – स्त्री का फर्क़ उसे नहीं होता है स्त्री का दुःख विपत्ति सा इसलिए क्यूँकि शिक्षा और आत्मविश्वास के अभाव में मेरा समाज उसे बड़ा करता है विलाप करती स्त्री से पता नहीं समाज को क्या सुख मिलता है ? ये दर्द वही जानें जिन पर ये वक़्त… Continue reading संबल

छल

प्रकृति उस नाजुक, खूबसूरत भोली – भाली लड़की सी है जिसे इंसानों से प्यार के नाम पर धोखे मिले हैं Kadambari Kishore

आसमां को छूने के लिये

अपने सपनों को टूटता देखने की हिम्मत थी नहीं मुझमें इसलिये हर ख्वाहिश को दरकिनार किया जो ज़रूरी है, दुनिया का हिस्सा बने रहने के लिये अब मैं और मेरे सपनें तैयार हैं आसमां को छूने के लिये उड़ने के लिये दुनिया का हिस्सा बनने के लिये Kadambari Kishore Kadambari Kishore

शिलाकृति

पत्थर पर जब तक आघात ना लगे वह एक ‘शिला’ है किंतु जब आघात सही समय और सधे हाथों से लगे तब वह शिला नहीं ‘शिलाकृति’ है हर चोट जो उस पत्थर ने सहा वह चोट सहकर ही उसे सब कुछ मिला है Kadambari Kishore