प्रमेय

प्रमेय है तू या समीकरण रेखागणित या अंकों का उलझा-सुलझा सवाल जिसे समझ कर भी ये भय रहता है कि समय रुपी गुरू के सामने कोई कमी ना रह जाये तू कोई कोण, त्रिभुज, चतुभुर्ज या षट्कोण सा समझने में जटिल, देखने में सरल लगे ऐसा कुछ रेखाएं बस एक-दूसरे को या तो काट रही… Continue reading प्रमेय

क़फ़स

यादों , किये गये वादों के क़फ़स से आजाद हो कब तक क्या हुआ ये सोच कर रोते रहें , कब तक ये दुनियाई बातों के नश्तर चुभोते रहें औरत- औरत को समझ जाये ये चीख-चीख कर बोलते रहें “अब जो हैं तो हैं” हम जिस दम जाना था उस दम निकल चले हैं कारवां… Continue reading क़फ़स

आप अकेली हैं ?

आप अकेली हैं ? आप अकेली रहेंगी ? आप तो समझदार हैं आप तो जान ही रही हैं!! समझ ही गयी होंगी!! ये सारे सवाल इस कदर इतनी आसानी से पूछे जाते हैं जैसे किसी की जिंदगी से जुड़े सवाल नहीं मुल्क और उसके बीते कल और आने वाली नस्लों की खुशियों का सवाल है… Continue reading आप अकेली हैं ?

वसीयत का सवाल

वसीयत में तू क्या दे गया होगा ? हक जताने के लिये मैंने क्या रख लिया होगा? क्या-क्या चाहिए एक पूरा हिसाब कर रखा होगा तू गवाही देगा खुद-ब-खुद वक्त की शक्ल में कुछ पुराने कागज, एक पुराना प्रेम पत्र जो नि:संदेह मेरे लिए नहीं लिखा गया था एक डायरी, डायरी में लिखी कुछ शायरी… Continue reading वसीयत का सवाल