थोड़ी सी खुशियों के लिये वक्त ने पसार दिये आसमान आँचल में इस उम्मीद से कि वो नाउम्मीद ना हो कुछ नायाब हीरे डाले उसके आँचल में कि अंधेरी-अकेली रातों में वो गुम ना हो कुछ अजनबी से दोस्त दिये कि अपनों के छोड़ जाने का उसे दर्द ना हो वस्ल से महरुम रखा कि… Continue reading सारा आसमान
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सबूत
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कयामत
आँगन
बहुत याद आते हैं घर के आँगन, आँगन में बोये अपनी नन्हीं हथेलियों से बाबुल के हरे-भरे घर के सपने अपने भाईयों के लिए लगाये अमलतास के जैसे खुशियों के पेड़ बहनों के साथ नोक -झोक में सजाये मायके से ससुराल और ससुराल से मायके एक सक्षम , समृद्ध नारी के ताने-बाने अपने लिये भी… Continue reading आँगन
रुसवाई
गोरी/ साँवरी
बाबा ने कभी ना कहा ‘ तू गोरी नहीं, क्यूँ भई साँवरी ?’ अम्मा ने कभी ना दिये ताने ‘ मेरी किस्मत पर है तू भारी ‘ लेकिन देहरी जब लांधी घर की तो जाना भई मैं तो हूँ साँवरी फिर खूब लगायी दूध – मलाई कि हो जाऊँ गोरी फिर दिमाग में एक सवाल… Continue reading गोरी/ साँवरी
शहर में सहर
शहर में सहर होना सूरज के दीदार, नयी सुबह के आगाज़ से ज्यादा रोटी कमाने के जुगाड़ से होता है ये सूरज भी हद दर्जे तक इंसा के साथ बावफा है हमें खुद के लिये वक्त नहीं और ये हमसे मिलने रोज चला आता है Kadambari सहर- Morning बावफा- Loyal
नजरों को पढ़ती नजर
नज़रों को पढ़ती हैं नज़र स्त्री के पास है गुण इन्हें पढ़ लेने का या पुरुष भी पढ़ पाते हैं ये हम नहीं समझ पाते लेकिन नज़रों को पढ़ पाते हैं महज नज़रों के मिलने से ही वासना, वहशीपना, प्रेम, अनुराग हास-परिहास सम-विषम दिख जाते हैं हर रोज कितनी ही अजनबी लेकिन कभी भावनाओं से… Continue reading नजरों को पढ़ती नजर