प्लेटफार्म या इंजन

प्लेटफार्म सी जिंदगी जहाँ रेलगाडियाँ रुके जब वह चाहें या जब जरुरत हो और आप की इच्छा या हित कुछ भी ना हो या फिर रेलगाड़ी के इंजन सा चलें हम जब हम चलें तो बदलाव की हवा चले साथ चलें और बदलाव के अगुयायी बनें Kadambari

बिम्ब

नदी का किनारा खामोश उसकी धारा उस पर चाँद दाग के साथ इतराता प्यारा-न्यारा चाँदनी का उम्मीद से नाता न्यारा जुगनुओं का पहरा हो जैसे हर पल सारा चाँदी सी चमकती मछलियों का धारा में बिम्ब मन को हरता पल-पल सेज सा बिछा दूर्वा का चादर तट पर और उस पर चाँद का प्रतिबिम्ब सहज,… Continue reading बिम्ब

समय के साथ चलने वाले

समय की सोच कर चलने वाले समय के साथ चलने वाले समय से आगे चलने वाले चल तो मानव ही रहा है लेकिन समय की सोच कर चलने वालों के साथ भीड़ समय के साथ चलने वालों के साथ समाज समय से आगे चलने वाले अकेले होते हैं अंतिम पंक्ति के लोग लक्ष्य , ध्येय… Continue reading समय के साथ चलने वाले

शब्द जाल

कितना सरल है शब्दों में उलझना और उलझाना कितना शांत है अपने शब्दों को आप ही साधना अपने मौन के साथ साधना Kadambari

विषाणु

विडंबना देखिये आपसी रिश्तों को बचाने के लिये एक-दूसरे के साथ वक्त बिताने के लिए हमें विषाणु ने बाध्य किया वरना हम तो व्यस्त थे अपनी आधुनिक उपभोक्तावादी जीवन में अचम्भित हूँ देश-विदेश एक एकता के सूत्र में बंधे विषाणु से अपनी और सबकी रक्षा के लिये नहीं तो सब व्यस्त थे एक-दूसरे के अधिकारों… Continue reading विषाणु

महक

किसी की यादों से जिंदगी महकती रही उसकी ही यादों में गिरती-सम्भलती रही ये जिंदगी! इसे चलनी थी चलती रही हँसते-गुनगुनाते अपने सपनों को जिंदगी सँवारती रही Kadambari

कब्र

जब धर्म नहीं था विचारधारा नहीं थी ऊँच-नीच नहीं था पढ़े-अनपढ़ नहीं थे तो समाज बना फिर पढे़-लिखे अनपढ़ अस्तित्व में आये और समाज कई सपनों की कब्र बना कब्रिस्तान में मानव का रहना दुश्वार हुआ Kadambari

रणछोड़

जब समय परीक्षा लेता है कोई पक्ष में नहीं रहता है स्वजन विपक्षी, विपक्षी स्वजन व्यंग्य , आक्षेप, आरोप सब लगता है यह कलयुग में नहीं हर युग में होता है ‘रणछोड़’ कृष्ण भी कहलाया है जब समय परीक्षा लेता है धन, मित्र, शत्रु , वैभव सब धरा रह जाता है लेकिन हो यदि दूरदृष्टि… Continue reading रणछोड़