नदी किनारे कभी निहारा है नदी के दोनों पाटों पर पसरी रेत को कोई निशान नहीं दिखने देती अपने ऊपर जबकि सच यह है वक़्त के साहिल से गुजरी हर चीज एक छाप छोड़ जाती है रेत की छाती पर Kadambari
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मेरी कविताएं-कहानियाँ
मेरी कविताएं मेरी कहानियां जैसे गर्मी की तपती दुपहरी में ठंडे पानी के दो घूंट जैसे बसंत में खलिहान और फूलों के खेत जैसे फागुन के महीने में आया प्रियतम का सन्देश जैसे उसने छू लिया हो और मैं भूली अपना दुःख और कलेश Kadambari
सिगरेट सी ज़िन्दगी
सिगरेट सी जलती जिंदगी इस में धुएं से जलते पल इस पल में हर धुएं पर कश लगाती वो अब ना उसे ज़िन्दगी की फ़िक्र ना दुनिया का डर अब जीने की है वजह अब नहीं मौत का डर Kadambari
कलम कहती है
कलम कहती है बगावत कर दूँ पूछती है कब तक लिखोगी ? जो लोग सुनें अब वह लिखो जो सच लगे प्रेम, विलास में जग आनंदित है अब वह लिखो जिससे तुम्हारा हृदय परिचित है अब जो लिखो वह सत्य लिखो Kadambari
देखा है क्या
वक़्त की चोट से कई बार सोने को भी अपना मूलगुण परिवर्तित करना पड़ता है क्या ? नहीं मैंने तो ऐसा नहीं देखा ना सुना ऐसा कभी सोना तो सोना ही रहता है चाहे सोने का वक़्त सो जाये या जागता रहे उसके लिए उसका प्रश्न और उत्तर भी उसके पास ही ऐसा देखा है… Continue reading देखा है क्या
दूर निकल आयी हूँ
जो राहें मुझे आवाज़ देती हैं उन राहों से कहो कोई मुझे आवाज़ ना दें मैं बहुत दूर निकल आयी हूँ उन राहों में जो कल के निशां हैं उन पर वक़्त की मिट्टी डाल आयी हूँ अब मैंने सीख लिया जीना सर्पों से जिंदगी और उसकी खुशियों के लिए सर्पों के जैसा कल का… Continue reading दूर निकल आयी हूँ
जल धाराएँ
नदी जब बहती है धाराओं में बँटकर कमजोर पड़ जाती है चट्टानों से उसके टकराने की तीव्रता लेकिन जब समेट लेती है धाराओं को तब बहती है अतुल वेग से चीर देती है चट्टानों को भी मैं बढ़ना चाहती हूँ उस नदी की भाँति जो चीरती है मुश्किलों के पहाड़ को और पाती है समुद्र… Continue reading जल धाराएँ
चरैवेति चरैवेति
अमावस की रात से भी काली रात थी वह, जिस रात का आना भी उसके हौसलों को कुचल ना सका | एक बदलाव जरूर था कि सब कुछ एक पल में बदला हुआ था , ठीक वैसे ही जैसे बदलाव आता है एक भयंकर चक्रवात के बाद |वो स्तब्ध खडी़ थी जैसे पेड़ खडे़ रहते… Continue reading चरैवेति चरैवेति
जाल
मछुआरों ने सीखाया जब जाल चालाकी से स्वादिष्ट भोजन को फंसाकर लगायी जाये तो फंसती हैं असंख्य मछलियाँ जो बिना मेहनत चाहती हैं पाना स्वादिष्ट भोजन बिल्कुल ऐसे ही फांसी जाती हैं लड़कियाँ फंस जाती हैं लड़कियाँ |Kadambari
अंतहीन
कब , कहाँ , क्यों , कैसे ? इन शब्दों को जब भी किसी वाक्य में जोडा़ तो वाक्यों ने अंतहीन अर्थ समेट लिए अपने में इसलिए अब इन शब्दों से रिश्ता रखा है लेकिन बहुत करीब का नहीं Kadambari