अजीब है या महज इत्तेफाक है सपने भी सपनों में प्रश्न करें!! कि जो पल बीत गया उन पलों को अपने कांधे पर लादे तुम्हारा कांधा नहीं दुखता ? ऐसे है उन बोझील पलों को ढो़ना जैसे अपने ही कांधे पर अपने मृत शरीर को ढो़ना और रोना ? मैं अवाक थी ये देखकर कि… Continue reading विद्रोह
Author: Kadambari Singh
घूंघट
” घूंघट में सबकुछ छिप जाता है? नहीं!!! घूंघट में रुप छनकर आता है “ इसमें छिपा गूढ़ अर्थ है घूंघट विचार का , सोच का , व्यवहार का लेखनी का , अभिव्यक्ति का , अभिवादन का स्त्रियों को देखने का , उन्हें समझने का ‘घूंघट’ उस संदर्भ में कि हर व्यवहार को करने से… Continue reading घूंघट
करीने से
सब कुछ करीने से वक्त के झीने से किस्मत के पिरोने से हँस- हँसा कर जीने से खामोशी से या मुस्कुरा कर हर दर्द-ओ-गम पीने से चलती है जिंदगी करीने से Kadambari
नववर्ष
नववर्ष,नवदिवस नवस्वप्न,नवसंकल्प नवसंदर्भ में जीवन को देखने का नवहर्ष नव पथ पर नव लक्ष्य के साथ बढे़ पग नव उल्लास, नव सुविचारों से सुज्जित घर-आँगन हंसे हर जीवन, खिलखिलाकर खिलें बचपन यही है प्रभु वंदन Kadambari
मैं चाँद नहीं
मैं चाँद नहीं, जो पृथ्वी का चक्कर लगाऊँ मैं चाँद नहीं, जो सूरज से माँग रौशनी शुक्ल पक्ष में इतराऊँ, पूरे नभ की सैर कर आऊँ और कृष्ण पक्ष में फिर सूरज से रौशनी की गुहार लगाऊँ मैं चाँद नहीं, जो बिना सितारा अपना श्रृगांर अधूरा कहकर जग से अनुकम्पा की गुहार लगाऊँ मैं चाँद… Continue reading मैं चाँद नहीं
दृश्य
कुछ दृश्य अदृश्य से होते है लेकिन वो दिख जाते हैं कलम को कलम की चक्षु से और धर लेते हैं कभी भी अदृश्य ना हो सकने वाला रुप बिल्कुल वैसे,जैसे अपने पति से वो मद्धम स्वर में पूछ रही थी ‘ दस रुपये का है ले लूँ’ या फिर वो बूढा़ मुस्लिम रिक्शा वाला… Continue reading दृश्य
व्यथा
व्यथा से व्यथित नहीं व्यवस्था की अव्यवस्था से व्यथित है जनमानस, जानते हो क्यूँ ” थाली में सबकी रोटी नहीं सिर पर सबके छत नहीं तन पर वस्त्र नहीं कपडो़ं में ढ़की नारी भी सुरक्षित नहीं” लेकिन इन सबका हमारे पास हल नहीं और सामना करना ही है हमें Kadambari
शून्य
शून्य सा लगता है जब मौन के साथ उस शून्यता को जान सकने का प्रयास कितनी ही शून्यता को अशून्य कर सकने में सक्षम है, यह मात्र उस शून्य और मौन के साथ बिताये हुए समय को ज्ञात होगा Kadambari
चायनामा
चाय सा है तू जिंदगी में वैसे तो कुछ भी नहीं ऐसा भी नहीं तू ना हो तो जिंदगी चलेगी नहीं लेकिन जो तू होगा तो जिंदगी बस वैसी हो जायेगी जैसे सुबह ‘जब अदरक वाली चाय मिल जाये शाम जब थक कर लौटें तो फिर चाय मिल जाये’ जब दुनियादारी थका दे, जब पुराने… Continue reading चायनामा
प्रवाह
कभी भी एक रिश्ते से निकलकर दूसरे रिश्ते में जाना इतना आसान नहीं होता है, जितना आसान लोग समझते है लेकिन एक मोड़ के बाद जिंदगी को भी रोक पाना इतना सरल नहीं जितना हम समझते हैं इस लिए छोड़ दिया जीवन रुपी नदी को स्वतंत्र | अगर बांधने की कोशिश की तो जीवन प्रवाह… Continue reading प्रवाह