पैसा कैसा है ? बिल्कुल उस सजी- संवरी युवती की तरह जिसे हर युवक पाना चाहे या फिर जाने-अनजाने उसके मोहपाश में बंधता जाये या किसी आकर्षक युवक की भाँति जिसकी उपस्थिति मात्र ही युवतियों का चित्त विचलित कर दे!!!! Kadambari
Author: Kadambari Singh
लकीर
कुछ रिश्ते जिस्म पर लकीरें छोड़ जाती हैं जो वक्त के दिये खरोंचो की तरह चुपचाप से जिस्म पर पडी़ तो रहती हैं लेकिन एक याद की तरह और कुछ रिश्ते जिस्मों की परिभाषा से परे होती हैं ऐसे रिश्तें भी लोग जीते तो हैं जो जिस्म पर खुदी कहानियाँ हैं Kadambari
स्पर्श / प्रेम
स्पर्श को प्रेम समझ लेते हैं हम और प्रेम को समझने का प्रयास भी करते हैं क्या हम ? मात्र तन को छू लेना प्रेम नहीं वह तो स्पर्श है जो क्षणिक और दीर्घ कुछ भी हो सकता है प्रेम में तन से ज्यादा मन का मिलना जरुरी है स्पर्श और प्रेम के भेद को… Continue reading स्पर्श / प्रेम
जरुरी
हर दिन कुछ लिखें ये जरुरी तो नहीं लेकिन कुछ ना लिखें तो चैन नहीं आता एक बेचैनी सी तारी रहती है और इस बेचैनी से चैन मिले इस उम्मीद में हर दिन कुछ लिख देते हैं हम | Kadambari
मेरा भी आसमान
सागर में मोती ढूंढती रही सीप को आस से खोलती रही ये सोचती रही “मोती सबको नहीं मिलती “ मंदिरों में मन्नतें माँगती रही हाजी, पीर के मत्थे टेकती रही दरगाहों में धागे बांधती रही तभी आसमां से बूंदें बरसीं मैं अवाक, अबोध सी भीगती रही हर हार-निराशा को धोती रही और जब ये बारिश… Continue reading मेरा भी आसमान
कुछ कदम
कुछ कदम हम साथ चले फिर कदम भी अपनी राह चले कदम भी वक्त के साथ मिलकर कितने सारे चाल चले इन सारे चालों को समझकर हर कदमताल पर साथ चले Kadambari
जल की धारा
स्वच्छ, चंचल, चपल जल की धारा जिससे सिंचित होती जीवन धारा जो मिलता राह में धूल, कण , मिट्टी राही या पथिक आवारा सबका वो स्वीकार करती मान-सम्मान जो दे पाये पथिक बेचारा सबके अवगुण को स्वीकार करती किंतु अपना मान ना खोती धारा प्रेम में पावन , स्वाभिमान में निड़र ललकारे जाने पर अकल्पनीय… Continue reading जल की धारा
मांझी और मझधार
तूफानों में कश्ती की रफ्तार नहीं मझधार में मांझी का हुनर परखा जाता है तूफान में कश्ती डूबे ना बस चल जाये मन्जिल तक तूफान से जब निकलेगी, हवा रफ्तार जब पकडे़गी नाव पानी के साथ खुद-ब-खुद आँख मिचोली खेलेगी फिर मांझी भी मझधार का मझधार मांझी की हुनर का राज खुद-ब-खुद खोलेगी ये वक्त… Continue reading मांझी और मझधार
निर्भय
यदि समाज का भय आपकी कलम को रोकता है तो यह सिद्ध है आप निर्भय नहीं हैं और आपका यह भय आपकी कलम पर परिलक्षित होता है और प्रभावित लेखनी होती है ठीक उस तरह जैसे समुद्र में आया भूकम्प सुनामी के रुप में परिलक्षित होता है लेकिन उससे प्रभावित समुद्र-तट के वनस्पति , पशु-पक्षी… Continue reading निर्भय
पथ
जीवन के तिमिर पथ में अनेकों ध्वनियाँ कंपित होंगी भिन्न-भिन्न आयामों पर तीव्रता की भिन्नता के साथ किंतु समानता मात्र एक हो समाधान की, रुप चाहे भिन्न हों मन शांत, हृदय उत्साहित हो सफलता के प्रबल वेग से आँखें आलोकित हों पथ में फैले अपार सफलता के संवेग से सब कुछ सार्थक होगा आक्षेप, आरोप… Continue reading पथ