अच्छा लगता है
जब तुम खुद के लिए
खुद कॉफी बना लेती हो
इतरा कर खुद से खुद ही पूछ लेती हो
‘चीनी कितनी डालूँ
आज ब्लैक कॉफी ही बनाऊँ ‘
और खूबसूरत लगती हो जब
खुद की नज़र खुद उतारकर
खुद ही काला टीका लगा लेती हो
आज क्या पहनूँ ?
ये कहकर खुद के नखरे खुद ही उठा लेती हो
आज खाना नहीं बनाऊँगी
ये सोचकर
कुछ शानदार हो जाए
और कुछ तीखा-चटपटा मँगा लेती हो
कितना कुछ अच्छा करती हो
अच्छा लगता है जब
कदम इसलिये नहीं बढ़ा देती
हाथ नहीं थाम लेती क्यूँकि वह पुरुष है
अच्छा लगता है
जब तुम कहती हो
कि साथ दे सकते हो क्या ?
एक साथी के रूप में
क्यूँकि दम घुटता है मेरा
दकियानूसी समाज में
सबसे अच्छा लगता है
जब तुम हारती नहीं
जीतने के लिए
सब कुछ हार जाती हो
Kadambari Kishore