अचल, अगम, अविरल जीवनधारा
जो ना समझे वह पथिक अज्ञानी बेचारा
हर हाल, हर काल में
इसका यही रूप निराला
हर बीतते पल में जीवन बसा है
जैसे कस्तूरी बसे स्वयं मृग में
और वह ढूंढे उसे इधर -उधर, वन -उपवन सारा
माया का है मोह निराला
लेकिन नहीं बंधती इसमें जीवनधारा
इसमें बंधा है वह पथिक बेचारा
जो जान ना सका
क्या है जीवनधारा
Kadambari Kishore