खोज

सगुण की खोज में

मानव खुद निर्गुण बनता जाता है

ईश्वर से लेकर नौकरी तक

सबमें ढूंढता है गुण

लेकिन नहीं देख पाता

खुद का ही अवगुण

मृगमरीचिका इस जग में

कस्तूरी मृग सा है मन

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