जो कहानियाँ कुछ औरतें अपने जिस्म पर लेकर जी लेती हैं
वो कहानियाँ गर कागजो़ पर लिखी होतीं
तो शायद कागज़ भी दर्द से बिलबिला उठते
जो बोझ समाज का जो कुछ औरतें उठाकर जी लेती हैं
गर वो बोझ सारे समाज को मिलकर उठाना होता तो शायद औरत ही औरत की बेहतरीन
दोस्त होतीं
जो रास्तें कुछ औरतें सब सुनकर तय कर लेती हैं
गर वही रास्तें कहने वालों को तय करना होता तो मन्जिल से खूबसूरत रास्तें होते
लेकिन गर सब कुछ नरम-मुलायम होता तो फिर अफसानों में जिक्र किनका होता
Kadambari Singh