एक दिन जब समाज द्वारा भूला दिया जाए
दायरों की देहरी का नियम
जब नहीं दिखे कोई भी नियम
जो अन्याय के विरुद्ध हो
जो शोषण के विरुद्ध हो
जब सब मतलब और सामर्थ्यवान के साथ मौन हों
तो उस समाज की देहरी पर न्याय मांगना
भिक्षुक से ही भिक्षा मांगने के समतुल्य है
कादंबरी
“एक कविता रोज़”