बाबा ने कभी ना कहा ‘ तू गोरी नहीं, क्यूँ भई साँवरी ?’
अम्मा ने कभी ना दिये ताने ‘ मेरी किस्मत पर है तू भारी ‘
लेकिन देहरी जब लांधी घर की तो जाना
भई मैं तो हूँ साँवरी
फिर खूब लगायी दूध – मलाई कि हो जाऊँ गोरी
फिर दिमाग में एक सवाल कौंधा
दूध से बन सकती है चाय लेकिन
चाय दूध नहीं बन सकता
फिर और गहराई से सोचा
दूध गोरा है पर उबलते ही फूँक दिया जाता है कि उबलकर गिरे ना
और चाय रख दी जाती है धीमी आंच पर
क्यूँ कि जितनी उबलेगी धीमे-धीमे
उतना ही रंग और स्वाद आयेगा
साँवरी हो या गोरी सीरत काम आयेगी
वो जोर से बोली और मस्त-मगन हो ली
Kadambari