मेरा भी आसमान

सागर में मोती ढूंढती रही

सीप को आस से खोलती रही

ये सोचती रही “मोती सबको नहीं मिलती “

मंदिरों में मन्नतें माँगती रही

हाजी, पीर के मत्थे टेकती रही

दरगाहों में धागे बांधती रही

तभी आसमां से बूंदें बरसीं

मैं अवाक, अबोध सी भीगती रही

हर हार-निराशा को धोती रही

और जब ये बारिश रुकी तो ये जाना

हर बूंद मेरे आसमां पर मोती के जैसी

सजी है , मेरे आसमां पर मेरे लिये रुकी है

Kadambari

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