अजीब है या महज इत्तेफाक है
सपने भी सपनों में प्रश्न करें!!
कि जो पल बीत गया
उन पलों को अपने कांधे पर लादे
तुम्हारा कांधा नहीं दुखता ?
ऐसे है उन बोझील पलों को ढो़ना
जैसे अपने ही कांधे पर अपने
मृत शरीर को ढो़ना और रोना ?
मैं अवाक थी ये देखकर
कि मेरे सपनों ने विद्रोह कर दिया है
मेरे वर्तमान के विरुद्ध
वो चाहते हैं मैं जी लूँ जीवन
जीवन की तरह, जो व्यतीत हो रहा है
एक उम्र कैद की तरह
मेरे अवचेतन मन का विद्रोह है
ये जड़ और चेतन वर्तमान से
सरल, जींवत भविष्य के स्वरूप
Kadambari