दृश्य

कुछ दृश्य अदृश्य से होते है

लेकिन वो दिख जाते हैं

कलम को कलम की चक्षु से

और धर लेते हैं कभी भी अदृश्य ना हो

सकने वाला रुप

बिल्कुल वैसे,जैसे अपने पति से

वो मद्धम स्वर में पूछ रही थी ‘ दस रुपये

का है ले लूँ’

या फिर वो बूढा़ मुस्लिम रिक्शा वाला

जो धर्म पूछे बिना लोगों को

पहुँचा रहा था गंतव्य तक और

कमा रहा था रोटी अपने परिवार के लिये

या फिर वो वृद्ध व्यक्ति जो

कड़कडा़ती ठंड में बिना जुराब-जूते के चला

जा रहा था किसी के लिए

या वो सड़क और गलियों में पलता मासूम बचपन

ये सब सबकी आँखों से अदृश्य किंतु

मेरे लिए अविस्मरणीय, अविस्मृत दृश्य

Kadambari

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