वक्त बड़ा चालाक है
कुछ सुनहले हर्फें लिखकर
मेरे दस्तखत ले लिये
और तकदीर को बहकाने लगा
अपनी नादानी को अपनी समझदारी
समझने लगा
लेकिन ये गौर फरमाना भूल गया
” चंद हर्फों पर दस्तखत किये हैं मैंने
वसीयत नहीं लिखी, वो बाकी है अभी
बाद मरने के वसीयत की ही कीमत होती है
कोई समझाओ उसको “
Kadambari Singh