जब सारा आलम सोता है
ये मन दीवाना सा होता है
इस दीवानगी के आलम में
एक शायर मेरे भीतर से
इस खचाखच भरी दुनिया में
बड़े ही चुपके से बाहर पाँव धरता है
इधर-उधर की सारी नब्जे़ हौले-हौले टटोलता है
इन नब्जो़ को पुरनम समझने की कशमकश
में जो बातें- हालातें वो बयां करना चाहता है
वही सारी हालातें वो नज्मों की शक्ल में
लिखता जाता है