वाजिब है

टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर

चलते -चलते जब

सरल-सपाट रास्तों से सामना हो

तो कुछ पल को अवाक रह जाना

लाज़मी है, वाजिब है

पैरों को ठोकरें ही इतनी लगीं हैं

डर जाना वाजिब है

लेकिन अच्छा नहीं है

डर कर रूक जाना

Kadambari Kishore

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