मुद्दत

एक मुद्दत से नहीं मिले तो

तू क्यूँ ये समझता है मुझे याद कुछ भी नहीं

एक मुद्दत से खामोश हूँ मैं तो

तू क्यूँ ये समझता है मुझे गिला तुझसे कुछ भी नहीं

एक मुद्दत से गर उफ भी ना किया मैंने तो

तू क्यूँ ये समझता है कि दर्द मुझे है ही नहीं

एक मुद्दत से बुतपरस्ती में हूँ तो

तू क्यूँ ये समझता है कि इंसा मैं हूँ ही नहीं

Kadambari

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