दम घुटा- घुटा सा रहता है
सांस बुझी- बुझी सी लगती है
क्यूँ जानते हो !!!!
यहाँ रोना जरूरी है
सहारा मांगना मजबूरी है
और गर सहारा मांग लिया
मतलब वह बहुत संस्कारी है
समाज भेद नहीं करता सपनों का दम घोटने में
फर्क बस इतना है
पुरुषों पर यहाँ महिला भारी है
मेरे समाज को दबे सपनों की नींव पर
जिंदा रहने की छूत वाली बीमारी है
Kadambari Kishore