नजरों को पढ़ती नजर

नज़रों को पढ़ती हैं नज़र

स्त्री के पास है गुण इन्हें

पढ़ लेने का या पुरुष भी पढ़ पाते हैं

ये हम नहीं समझ पाते

लेकिन नज़रों को पढ़ पाते हैं

महज नज़रों के मिलने से ही

वासना, वहशीपना, प्रेम, अनुराग

हास-परिहास सम-विषम दिख जाते हैं

हर रोज कितनी ही अजनबी लेकिन

कभी भावनाओं से भरी , कभी वासनाओं में

लिपटी नज़रों से टकराते हैं

ये ही दुनिया है

ऐसे ही दुनिया वाले हैं

ये सोच कर हम अपने पथ पर बढ़ जाते हैं

हर रोज नज़रों को पढ़ती है नज़र

हर रोज मन के अखबार पर छपती है कई खबर

Kadambari

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