नदी जब बहती है
धाराओं में बँटकर
कमजोर पड़ जाती है चट्टानों से
उसके टकराने की तीव्रता
लेकिन जब समेट लेती है धाराओं को
तब बहती है अतुल वेग से
चीर देती है चट्टानों को भी
मैं बढ़ना चाहती हूँ
उस नदी की भाँति जो चीरती है
मुश्किलों के पहाड़ को
और पाती है समुद्र यानि सफलता को
कादंबरी