गंगा जल सी मेरी कविताएं हैं मेरे लिये
जब भी लगा हृदय मलिन, मन भारी
जब भी लगी लाचारी, बेबस सी मैं
अब हारी कि तब हारी
जब नयन हुए अश्रु से भारी
जब आत्मा हुई छलनी, शब्द बाण चले जैसे आरी
जब लगा संबल पर मेरे मेरा समय भारी
मेरी कविताओं ने सहेजा मुझे
देकर आलिंगन अनेकों बारी
धोया मेरा मन, पखारे मेरे चरण जैसे
मैं चलती रहूँ मस्त मगन
और छू लूँ ये गगन
जहाँ से आती हैं ये गंगा
शिव को करके पावन और मगन
Kadambari Kishore