आँगन

बहुत याद आते हैं

घर के आँगन, आँगन में बोये

अपनी नन्हीं हथेलियों से बाबुल के

हरे-भरे घर के सपने

अपने भाईयों के लिए लगाये

अमलतास के जैसे खुशियों के पेड़

बहनों के साथ नोक -झोक में सजाये

मायके से ससुराल

और ससुराल से मायके

एक सक्षम , समृद्ध नारी के ताने-बाने

अपने लिये भी उस आँगन की माटी में

समय की गुल्लक में बचा कर जमा किये सपने

माँ की झिड़कियाँ

पापा की थपकियाँ

सहेलियों की हँसी ठिठोलियाँ

दादी ने जो सुनायी वो कहानियाँ

सब कुछ याद आता है

जो मेरे घर के आँगन ने वैसे ही

सहेज कर रखा है जैसा मैं

सौंप कर आयी थी उसे

आँगन छोड़ते वक्त

बस आँगन नहीं सहेज सका वो वक्त

जिस वक्त के कारण मैं उसे छोड़ आयी थी

फिर भी बहुत याद आते हैं

घर के आँगन

Kadambari

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